Saturday, July 10, 2010

अपराध और व्यवस्था....

इंदौर में अपराधों का ग्राफ यदि देखा जाए तो विगत कुछ वर्षों से लगातार दिन दुगनी रात चौगुनी की तरह अपने पैर फैला रहा हैं। अपराध और अपराधी दोनों की बेहतरीन जुगलबंदी चल रही हैं। आम व्यक्ति को समझ ही नहीं आ रहा हैं कि शांति और स्वाद के नाम से मशहूर शहर अब अपराधों के कारण सुर्खियों में हैं। बड़ों की तो बात ही अलग हैं मासूस बच्चे भी इन अपराधियों की नजर में हैं। क्या वहशीहत इतनी अधिक बढ़ गई हैं कि 2-7 साल तक की बच्चियों को ये लोग अपना हवस का शिकार बना रहे हैं। यही नहीं यह अपराध होने के बाद हम पुलिस और प्रशासन को दोष अवश्य देते हैं। बेचारे वे भी क्या करें कहाँ-कहाँ तक दौड़ लगाएँ। हर गली मोहल्ले और कॉलोनियों में अपराधी बसे हैं।

अपराधी वो नहीं जिसने अपराध किया हैं। अपराधी तो वे भी है, जिन्होंने इन अपराधियों को अपराध करते देखा और नजरअंदाज कर दिया। सजा पाने के तो ये भी हकदार हैं। रही बात व्यवस्था कि तो पुलिस प्रशासन अपनी तरफ से बिल्कुल कोशिश करता हैं। भले ही वह देर से आएँ लेकिन अपना काम बड़ी ही मुश्तैदी के साथ शुरू करते हैं। लाव-लश्कर के साथ आते हैं, तहकीकात करते हैं, पंचनामें बनते हैं, अपराधियों को ढ़ूंढ़ने के लिए खोजी दल बनाए जाते हैं। जरूरत पड़ने पर आसपड़ोस की जगह पर भी जाते हैं। भाई आप पुलिस के काम को दोष मत देना हैं। हाँ यह बात और है कि हमारे शहर के प्रमुख पुलिस विभाग के अधिकारी ने कहाँ है कि अब समय आ गया है कि गधों को पीछे कर घोड़ों को आगे किया जाएगा। इस विषय में तो आप लोग उन्हीं से सवाल-जवाब करे तो बेहतर होगा। नहीं तो क्या पता मुझे भी कहीं इन प्रक्रियाओं से न गुजरना पड़े।

इन अपराधों के पीछे बहुत से कारण हो सकते हैं। पारिवारिक विवाद, आपसी रंजिश, लेनदेन, प्रेम प्रसंग, रस्साकशी यानी कि आप सोच भी नहीं सकते हैं ऐसे बहुत से कारण हैं। यदि देखा जाए तो आदमी की मानसिक स्थिति बिगड़ चुकी हैं। एक तो महँगाई इतनी बढ़ा दी हैं कि बेचारा आम आदमी अब दाल रोटी की भी बात करने से कतराता हैं। हाँ, हमारे सरकारी गोदामों में अनाज भले ही सड़ जाए या गल जाएँ कोई फर्क नहीं पड़ता हैं। गरीब का बच्चा जरूर कुपोषण के शिकार से मर जाता हैं, लेकिन आनाज के गोदामों के चूहों को देखकर व्यक्ति डर ही जाए, पहली नजर में तो वे चूहे नजर ही नहीं आते हैं। ऐसा लगता है कि खरगोश घूम रहा हैं। पर खरगोश और चूहों में अंतर नजर आ ही जाता हैं पर गौर से देखने पर। सरकार को भी कर्मचारियों की मिली भगत और जमाखोरी के चलते बड़े ही सोच समझकर कदम उठाना पड़ता हैं। ये काम इतनी चालाकी से किए जाते हैं कि आम व्यक्ति के पल्ले कुछ पड़ता ही नहीं हैं। मतलब ये हैं कि सारे कुएँ में भाँग मिली हुई हैं।

यदि वाकई में अपराधों के ग्राफ को कम करना हैं, तो हमें ही आगे बढ़ना होगा। हमारे आसपास नजर रखना अत्यन्त ही आवश्यक हैं। कहीं भी कोई संदि‍ग्ध व्यक्ति नजर आता हैं, तो तुरंत ही पुलिस को सूचित करें। इस बात को बिल्कुल भी नजर अंदाज न करें। क्यों यदि हम सजग रहेंगे, तब ही काम बनेगा।

- राजेन्द्र कुशवाह

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