Thursday, September 23, 2010

सिर्फ 'तुम' और 'मैं'...


प्रिय जानम...

अरे नहीं... कोई देख लेगा..
तुम्हारे ये वाक्य आज भी
मेरे कानों में
गूँजते हैं... भले ही इन्हें
एक दशक से ज्यादा हो गया...

तुम्हारे सूर्ख लवों का
वो एहसास... आज भी मेरे
लवों पर हैं...

मेरे स्पर्श मात्र से
काँपते हुए तुम्हारे
होंठ ... और गर्म होती तुम्हारी साँसें
धीरे से हल्के से मेरा तुम्हें छूना...

और तुम्हारा वो छिंटक कर दूर जाना...
सच में नहीं भूला पाया तुम्हारे
उन एहसासों को...

तुम नहीं हो तो क्या हुआ
आज भी तुम्हारे
एहसासों के साथ जी रहा हूँ...

सिर्फ तुम्हारा 'राज'

Thursday, September 9, 2010

प्यार ....

कितना छोटा हो गया है,
प्यार का दायरा।
अब प्यार सिर्फ अपने लिए
किया जाता है, प्यार के लिए नहीं।

तभी तो प्यार अब खुशी नहीं देता,
अकेलापन देता है और,
इंसान अपनों के बीच, भीड़ में भी,
रह जाता है अकेला निस्पृह, निस्पंद,
एक टापू की तरह।