कुछ लोगों का मत है कि दारू पीने से गम दूर हो जाते हैं, कुछ लोग कहते हैं कि नींद अच्छी आ जाती है और कुछ लोग (मेरे जैसे) कहते हैं कि रात में पी लो तो सुबह ऐसा लगता है कि जैसे किसी ने पेट को एरियल पावडर डालकर अच्छी तरह से साफ कर दिया है। लोग कहते हैं कि इन बातों में कुछ नहीं है, ये तो सब झूठ है, वह तो पीने के लिए बहाना बना रहा है।
मैं किसी और के बारे में बात तो बाद में करूँगा, लेकिन अपने अनुभव जरूर आपको बताता हूँ... यह सच है कि दारू पीने से शरीर को नुकसान होता है, पर फिर भी लोग दारू पीते हैं। आज सुबह जब ऑफिस आ रहा था, तो किसी सज्जन ने मुझसे लिफ्ट माँगी। चूँकि मैं जहाँ रहता हूँ, वहाँ से मेनरोड तक आने के लिए कोई साधन नहीं मिलता है, इसलिए मैं अकसर लोगों को लिफ्ट दे देता हूँ। सुबह के लगभग 6.45 हो रहे थे, मैंने उस बंदे को लिफ्ट दे दी और गाड़ी स्टार्ट कर चलने लगा। चलते-चलते मैंने उससे पूछा कि कहाँ तक जाना है... मेरी बात का जवाब देने की उसमें शक्ति नहीं थी, बस टूटे शब्दों में कहा कि आगे तक छोड़ देना.. उसके मुँह से शराब की काफी बदबू आ रही थी, पूछने पर जवाब दिया कि कुछ परेशानी है, इसलिए पी ली, माफ करना भाई... अरे... रे... बस यहीं रोक दो... पता है.. उसने मेरी बाइक शराब की दुकान के आगे रुकवाई और धन्यवाद कहकर चल दिया।
वह तो चला गया, लेकिन मेरे अंतर्मन में मंथन चल रहा था। मैंने अपने अंतर्मन की बातों को सोचा... फिर कुछ निर्णय लेकर मन को समझाया। यह सच है कि व्यक्ति जब परेशान होता है, तो उसे एक कांधे की जरूरत होती है, जिस पर सिर रखकर अपना दिल हलका कर ले... अपने मन की बात किसी दूसरे को बता दे... यही नहीं सामने वाले व्यक्ति को भी चाहिए कि वह उसकी बातों को समझे... और उसे सही समझाइश दे तो मैं समझता हूँ कि ऐसा करने से लगभग 25 प्रतिशत उस व्यक्ति को शराब के पास जाने से रोका जा सकता है।
ज्यादा शराब पीने से व्यक्ति का दिमागी संतुलन बिगड़ जाता है। उसके बात करने का लहजा बदल जाता है। यही नहीं उसमें चंद ही मिनटों में ऐसे परिवर्तन आ जाते हैं, जैसे किसी ने उसके ऊपर कोई जादू कर दिया हो। शांत रहने वाला राजू जिस दिन शराब पी लेता है, तो उसके व्यवहार में परिवर्तन आ जाता है।
हमारे सामने रहने वाले अंकल को रोज ड्रिंक लगती है। वे बिना पिए रह ही नहीं सकते हैं। दिनभर तो ब्लैक एण्ड व्हाइट टीवी रहते हैं, परन्तु ऑफिस से घर आने के 30 मिनट बाद ही रंगीन टीवी बनना शुरू हो जाते हैं और रात 8 बजे तक तो पूरी तरह से रंगीन टीवी बनकर ऑन हो जाते हैं। फिर अब आपके हाथ में है कि कौन-सा चैनल देखना है। सारे चैनल शुरू हो जाते हैं। यहाँ तक कि विदेशी चैनल भी आप देख और सुन सकते हो। जहाँ तक मुझे पता है वे लगभग 30 सालों से तो निरंतर शराब पी रहे हैं।
डॉक्टर भी कहता है कि अब वह उनकी जरूरत बन गई है। उनको गोली-दवाइयाँ भी असर नहीं करतीं... वैसे तो भगवान की दुआ से आज तक उन्हें कोई बीमारी नहीं हुई है। पूर्ण रूप से स्वस्थ हैं।
ऐसे ही एक सज्जन हैं हमारे राव साहब... उनकी तो बात ही निराली है... सालभर में एक दिन और एक क्वार्टर और उसमें से भी एक पैग वो ऐसे पीते हैं जैसे सिर्फ आज का दिन ही है, जो उन्हें पीने की इजाजत देता है। वह दिन होता है रंगपंचमी। इसके अलावा वे कभी हाथ नहीं लगाते हैं।
यदि हम साहित्य की ओर जाएँ तो कवि हरिवंशराय बच्चन ने तो पूरी किताब ही लिख डाली मधुशाला के नाम पर और वाकई में बहुत अच्छी कविता लिखी है... मंदिर, मस्जिद झगड़ा कराए और मेल कराए मधुशाला। इतिहास गवाह है कि अवश्य दारू में कुछ ऐसी बात है, जो व्यक्ति को एक ही दिशा में सोचने को मजबूर कर देती है और व्यक्ति कुछ ऐसा कर जाता है जिसे हमेशा याद करते हैं।
हरिवंशरायजी के बेटे ने तो पूरी फिल्म ही शराब के ऊपर कर ली। फिल्म का नाम भी शराबी ही था, अच्छी पिक्चर है। उसका शानदार डायलॉग 'कभी जितनी छोड़ दिया करते थे मयखाने में ... आज उतनी भी नहीं बची पैमाने में....'। यही नहीं उसमें यह भी दर्शाया गया कि नशा शराब में होता तो नाचती बोतल।
हमने भी शराब का तहेदिल से सेवन किया और किसी की याद में बहुत सारी कविताएँ लिख डालीं। रात-रातभर उनके गम में प्याले पर प्याले छलकाते रहे, लेकिन वो है कि आए ही नहीं। अरे भाई हम भी किसी जमाने में बड़े दिलजले हुआ करते थे। खैर आज भी इंतजार है किसी का ... पर कमबख्त कोई आए तो सही।
कुल मिलाकर इन बातों का निष्कर्ष कुछ नहीं निकला है... बाकी आप लोगों की प्रतिक्रियाओं की जरूरत है...
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