Friday, January 30, 2009

अब तो इकरार कर लो..

प्रिय जानम,

हाँ ये सच है कि मुझे तुमसे
अब भी प्यार...

ये वही प्यार है... जिसके सामने
तुम गत वर्षों से मौन-सी
रही...
मैं कहता ही रहा...
पर तुम चुप-सी रहीं

मिल गईं तुम्हें उन किताबों की
मंजिल... जिसकी तलाश थी...

पहुँच गईं उस मुकाम पर
जिसकी बुनियाद तुमने धैर्य, लगन, कर्मठता
और पारिवारिक चुनौतियों के बीच
रखी थी...

कब तक इंतजार करना होगा
तुम्हारे उन लम्हों का...
जिसके सहारे अब तक जी रहा हूँ
और पता नहीं कब तक ...
उन लम्हों के बीच रहता रहूँगा

प्रकृति भी अपना स्वरूप बदलती है...
ठीक उसी अंदाज में...
मैं भी चाहता हूँ कि तुम
बदलो अपने आपको...

और समा जाओ मेरे
प्यार के आगोश में...
और जान डाल दो
मेरी चाहत के शब्दों में...

हद होती है इंतजार की...
हद होती है बेकरारी की...
अब जरूरत है
इजहारे प्यार की...

सिर्फ तुम्हारा
बीता हुआ 'कल'

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