Sunday, January 25, 2009

दहकती रही मेरी हसरतें गुलमोहर के साथ...

मेरी जान,

अभी तक गर्म हैं तुम्हारे होंठ,
भले ही अर्सा पहले छूआ था, मैंने उन्हें
मेरी प्यास शुरू होती है
समन्दर के किनारे से
और खत्म होती है
तुम्हारी आँखों के नीले दरिया में...


कई बार चाहा कि
छा जाऊँ इन्द्रधनुष बनकर
तुम्हारे मन के आसमान पर
या सजता रहूँ तुम्हारी देह पर
हर श्रृंगार बनकर

फलती रही अनगिनत कामनाएँ
अमलतास के सुनहरेपन में
दहकती रही हसरतें गुलमोहर के साथ
तुम एक बार ही सही
सिर्फ एक कदम चलो
पसारकर अपनी आत्मीय बाँहें, समेटों मुझे
और डूब जाओ सूरज की तरह
मेरी इच्छाओं के क्षितिज में...

सिर्फ तुम्हारा मन

2 comments:

MANVINDER BHIMBER said...

गणतंत्र दिवस की आपको बहुत बहुत बधाई

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर....गणतंत्र दिवस की बहुत बहुत शुभकामनाएं।