यूँ तो हर लम्हें तुम्हारी ही बात होती है...
लेकिन क्या करें,
जब तुम पास नहीं होती हो...
रह गई तमन्नाएँ अधूरी
तुम्हारी चाहत में...
तुम तो पहुँच गईं आसमाँ की बुलन्दियों पर...
हम रह गए यादों की असीम गहराइयों में...
पता नहीं कब उभरेंगें
इन चाहत की जंजीरों से...
तुम्हारी यादें ही बेडि़याँ बन गई हैं
मेरी चाहत से...
आज भी याद हैं, वो तुम्हारा
मुझसे मिलना पहली बार बारिश में भीगे हुए मिलना।
दशकों बाद भी आज... ताजा है तुम्हारी चाहत की
तस्वीर मेरे जहन में...
अब तो उम्र भी इस पड़ाव पर
पहुँच गई हैं...
कि आना तुम्हारा
और न आना तुम्हारा
बस एक ख्वाब बन गया है...
पर इस चाहत का क्या करें...
जो जान बन गई हैं तु्म्हारी...
तुम्हारा राज
1 comment:
हम रह गए यादों की असीम गहराइयों में...
It's an achievement ! Cherish it !
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