Friday, July 2, 2010

गलती मुझसे हुई


हाँ मैं मानता हूँ कि
गलती मुझसे हुई
पर तुम भी भागीदार
थी, मेरी गलती मैं

तुम जब जानती हो कि मैं हूँ
उस जहान का
जहाँ से मुझे मतलब नहीं,
फिर भी मैं
जुडा रहा तुम्हारे जहान से

जानने की कोशिश भी नहीं की...
चाहता तो, तो तुम्हारा सारा जहान
मेरा अपना था, मैं सब कुछ जान सकता था
पर, तुम्हारी अपनी इच्छा नहीं थी
फिर कैसे गुस्ताखी कर सकता था...

कुछ लोग मेरे अपने थे
कुछ अजनबी थे....
फिर मैं तुम्हारी और मेरी
बात को कैसे जग
जाहिर करता....

पर अब तुम मुझे जानती हो
चेहरे से पहचानती हो
फिर भी क्यों मेरी अनजानी-सी
गलती को स्वीकार
नहीं करती हो...

मैं बात नही करूंगा... तुमसे
बात करोगी तुम, मुझसे
तब ही, हम मिलेगे, तुमसे

'राज '

2 comments:

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

अपनी गल्ती को खूबसूरत रूप में प्रस्तुत किया है आपने, बधाई।
………….
दिव्य शक्ति द्वारा उड़ने की कला।
किसने कहा पढ़े-लिखे ज़्यादा समझदार होते हैं?

Sunil Kumar said...

सुंदर रचना , बधाई