कभी-कभी मैं सोचता हूँ कि चापलूसी आखिर किस बला का नाम है? शायद यह एक ऐसी बला है, जो किसी को एकबार लग जाती है तो छूटने का नाम ही नहीं लेती।
चापलूसी का मतलब है होता है किसी को प्रसन्न करने के लिए उसकी झूठी प्रशंसा करना, उसे अच्छा लगे वैसा हीबोलना, अपने स्वार्थ को साधने के लिए उसकी अतिशयोक्तिपूर्ण प्रशंसा करना। चापलूस दूसरों की बातों को तीसरेके सामने नमक-मिर्च डालकर चमचा बनकर परोसता है।चापलूस एक तरह से डाकिये का काम मुफ्त में कर देता है।फर्क इतना है कि डाकिया पत्र द्वारा दो व्यक्तियों के बीच केसंपर्क को, संबंध को बनाए रखता है, तो चापलूस चापलूसी केमाध्यम से दो व्यक्तियों के प्रगाढ़ संबंध को भी तोड़कर रख देताहै। चापलूसों को चापलूसी में ब्रह्मानंद सहोदर आनंद की प्राप्तिहोती है। इस आनंद से, रस से वह इतना अधिक अघा जाते हैंकि उन्हें डकार ले-लेकर जीते रहना पड़ता है। उनका साधारणीकरण हर जगह होता रहता है। ये बाहर-बाहरप्रसन्न व अन्दर ही अन्दर दुःखी रहते हैं। मस्के मारकर बातें करने की अदा इन्हें जन्मजात प्राप्त होती है। येजिससे किसी की चापलूसी करते हैं, उसे भी इन पर कभी भरोसा नहीं होता, क्योंकि उनसे हम लड़ाई नहीं करसकते। इसका मतलब तो यही होता होगा कि जो चापलूसों के वश में हो जाते हैं, वे महामूर्ख होते हैं।
चापलूसी की मात्रा पुरुषों में कम और स्त्रियों में अधिक पाई जाती है। क्योंकि यह शब्द स्वयं ही स्त्रीलिंग है। स्त्रियोंमें भी ये उनकी शारीरिक आकृति के अनुपात में होती है। दुबली-पतली पवन के झोंके से हिलती रहने वाली स्त्रियोंमें ये बहुत ही कम मात्रा में, जिनका तन तंदुरुस्त हो उनमें सप्रमाण मात्रा में तथा मोटी थुल-थुल शरीर वाली स्त्रियोंमें ये अत्यधिक मात्रा में पाई जाती है। मोटी स्त्रियों में यह इसलिए अधिक होती है कि वे यही सोचती रहती हैं किउनके शरीर के मोटेपन से उनकी चापलूसी भी मोटापा पाती जाएगी और मोटी चापलूसी दुर्बलों को अवश्य दबोचदेगी। ऐसा उनका चापलूसी भरा विश्वास होता है।
आज के मस्कापॉलिश युग में चापलूसी करने में माहिर होना अति आवश्यक है। अगर आप किसी को अखाड़े मेंशारीरिक बल से पछाड़ नहीं सकते हो तो उसे चापलूसी द्वारा आसानी से चित कर सकते हैं। अब तो चारों ओरचापलूसों की जमात खड़ी हो रही है। उनकी यूनियन भी बन गई है। अतः आप किसी भी चापलूस को चापलूसीकरने से रोक नहीं सकते। अगर आप ऐसा दुःसाहस इस लोकतांत्रिक देश में करेंगे तो वे हड़ताल कर देंगे, बंद काआह्वान करेंगे, रास्ता रोको आंदोलन छेड़ देंगे, हल्ला बोलेंगे, अनशन करेंगे, विरोध पक्ष का समर्थन मांगेंगे और इनसबसे भी सफल नहीं होंगे तो अंत में चापलूस यूनियन चापलूसी द्वारा आपको ठिकाने लगा देगी। तब हमें भीचापलूसी करनी पड़ेगी, क्योंकि चापलूस स्वयं भी चापलूसी से ही वश में होते हैं। इसलिए चापलूसों से सदा सावधानरहना चाहिए, क्योंकि इनसे आपको भगवान भी नहीं बचा सकता, क्योंकि वह तो स्वयं ही चापलूसी से प्रसन्न होजाता है। चापलूस जानते हैं कि खुशामद से ही आमद है। बिना किसी की खुशामद किए लाभ नहीं होता। साधारण, निकम्मे लोग केवल खुशामद करके कोई बड़ा पद पा लेते हैं।
अब तो अंतरराष्ट्रीय चापलूसी प्रतियोगिता का आयोजन होने जा रहा है। हमारी सरकार भी इसमें गहरी रुचि ले रहीहै। हमारे राजनीतिज्ञों को इससे पूरा लाभ तो होगा ही, चापलूसी के लिए स्तरीय पुरस्कार भी मिलेंगे।
चापलूसों के चेहरे पर हँसी और आँखों में क्रूरता होती है। इनके दोस्तों की कोई कक्षा ही नहीं होती अर्थात वे अकक्षेयहोते हैं। चापलूस इस बात के लिए सदा सजग होते हैं कि उनकी बात कोई अन्य न सुन ले। बात को यकायक रोकनेकी कला में ये माहिर होते हैं। कान इनके लम्बे और आँखें बड़ी-बड़ी होती हैं। ये जिनकी चापलूसी कर रहे होते हैं, उन्हें कनखियों से ही देखते हैं। ये भीड़ में भी एकांत खोज लेते हैं। ये बिहारी के नायक और नायिका के समान भरेभौन में करत हैं नैन ही सौं बात-जिससे बतरस परोस सकें। इनकी वाणी मधुर और जीभ कड़वी होती है, अर्थातमधुमिश्रित विष। इन्हें हार्ट अटैक होने की संभावना अधिक रहती है। हार्ट अटैक के बाद इन्हें चापलूसी के इंजेक्शनदिए जाएँ तो मरते वक्त भी अपनी चापलूसी करने की अंतिम इच्छा को पूरा कर पाएँगे।
ये परिवार नियोजन पर अमल कभी भी नहीं करते। ये दूसरों में प्रिय होने की निकम्मी कोशिश करते रहते हैं।परिणामस्वरूप महादानी कर्ण के गुण भी जरूरत पड़ने पर ग्रहण कर लेते हैं। बड़े-बड़े पदाधिकारियों को पटाने में येपूर्ण रूप से कुशल होते हैं। चापलूस अपने को कभी भी हीन नहीं मानते फिर भी कभी ऊँचे नहीं उठ सकते। ये हमेशादेखते रहते हैं, खाते नहीं-तेन तक्त्येन भुंजीथा का हमेशा पालन करते हैं। सब कुछ त्यागकर भी ये चापलूसी करनानहीं त्याग सकते। ये हीन को महान और महान को हीन बना देते हैं, नीच को भी ऊँचाई पर पहुँचा देते हैं। प्रशंसाद्वारा दूसरे का अपमान ये बहुत अच्छी तरह कर सकते हैं। जिससे चापलूस अपने दुश्मन से अधिक दोस्तों ही काअपमान करते हैं, क्योंकि किसी की बार-बार प्रशंसा करना भी उनके घोर अपमान के बराबर होता है। निराधारप्रशंसा करने वाला निराधार निंदा भी कर सकता है। इस प्रकार भाव-पक्ष और कला-पक्ष का चापलूसों में अपूर्वसंगम होता है।
चापलूस का व्यक्तित्व गहरा नहीं होता। उसका तल तुरंत ही सामने दिखने लगता है। इनका कोई चारित्र्य नहींहोता। ये खुले होकर भी अपने को नंगा नहीं मानते। इनके चेहरे से नूर नहीं, दुनियाभर की चापलूसी टपकती रहतीहै। मेहमानों की आवभगत ये चापलूसी के नाश्ते से ही करते हैं।
चापलूसों का सिर्फ एक ही दोष होता है कि वे चापलूस हैं, ऐसा कभी भी मानने को तैयार नहीं होते। खुशामद सेतत्काल फल मिलता है। अयोग्य व्यक्ति केवल खुशामद के बल से ही लाभ उठाते हैं। इसीलिए तो उक्ति प्रसिद्ध है कि 'खुशामद से आमद है, इसीलिए सबसे बड़ी खुशामद है'।
2 comments:
bahut baDhiya
---आपका हार्दिक स्वागत है
चाँद, बादल और शाम
बहुत बढ़िया
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