Saturday, December 20, 2008

किससे कहें....

प्रिय जानम,

हम कहें किससे अपनी व्यथा
कारुणिक है हमारी कथा...

मिल गए आप, अच्छा हुआ
मर गए होते हम अन्यथा।।

वह मुझे देगी धोखा कभी
स्वप्न मे भी ये सोचा न था।।

रात के साथ ही ढल चली
रातरानी की अंतर्कथा।।

रंक हैं ये तो राजा नहीं
इन से पाने की आशा वृथा।।

खेलना दिल से, फिर तोड़ना
प्यार की अब यही है प्रथा।।

'जीत' होती है बस धैर्य की
आपदा-काल में सर्वथा।

सिर्फ तुम्हारा 'राज'

1 comment:

संगीता पुरी said...

'जीत' होती है बस धैर्य की
आपदा-काल में सर्वथा।
बहुत सुंदर....बधाई।