Tuesday, December 23, 2008

मेरी जिद्‍ तुम्हीं तो थीं

प्रिय जानम,

यह मेरी जिद्द थी कि
तुम मेरी रहो...
मेरी शहदत है, कि
मैंने तुम्हें टूटकर चाहा

और यह सच हैं, ग्वाह हैं
मेरे दिल का जहान
जहाँ आज भी तुम रहती हो
मैं जानता हूँ कि तुम मेरे
इन शब्दों से बहुत दूर हो...
पर... फिर भी तुम
मेरे कितने करीब हो...

मेरे दिलो दिमाग पर
छाए रहते हो...
मेरे आस-पास
तुम्हीं तो रहते हो...

सिर्फ तुम्हारा 'राज'

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