लाल, पीली और हरी बत्ती से आप और हम भलीभाँति परिचित हैं। लाल बत्ती तो रुको, पीली बत्ती बस थोड़ा और, हरी बत्ती ठीक है चले जाओ! मैं जब घर से निकलता हूँ तो मुझे रास्ते में इन्हीं बत्तियों का सामना करना पड़ता है। हाँ, ये बात और है कि चौराहे पर मुझे चंद सेकंड या ये कहें अधिक से अधिक 1 मिनट ही रुकना पड़ता है।
वैसे तो कभी ध्यान नहीं दिया कि इस 1 मिनट में क्या हो रहा है, लेकिन एक दिन सोचा क्यों न इस एक मिनट पर गौर किया जाए। बस फिर क्या था, आपके सामने है वो बातें जिन्हें मैंने देखा, सुना...
दृश्य : प्रथम
45 सेकंड : यार, ये लाइट भी न बस लेट करवा देती है... बाइक पर सवार दो दम्पति... क्या हुआ, अभी तो टाइम है, डॉक्टर मैडम तो आधे घंटे लेट आएँगी। ठीक है, पर चौराहे पर खड़ा होना बहुत बेकार लगता है। उसकी पत्नी बोली। कुछ लोग बार-बार अपनी घड़ी की ओर देखते... फिर सिग्नल की ओर। अरे! भाई जब हमें मालूम है कि इन लाइटों का सामना करना पड़ेगा तो जल्दी क्यों नहीं निकलते।
वहीं चौराहे पर कुछ लफंगे टाइप के लड़के जो कि एक बाइक पर तीन सवार थे, यातायात नियमों को ताक पर रख, पास में स्कूटी पर खड़ी लड़की को ऐसे आँखें गड़ाकर देख रहे थे कि मानो उनकी आँखें न हुईं, एक्सरे मशीन हो गई। वहीं दूसरी ओर मैं भी खड़ा था, जो इन गतिविधियों को देख रहा था।
दृश्य : दो
वहाँ से अगले चौराहे पर पहुँचा। वहाँ मैं देखता हूँ कि मेरे पास में बेहद खूबसूरत लड़की एक्टिवा पर थी। उसे देखकर ऐसा लगा कि जैसे ईश्वर ने उसे फुरसत के पलों में बनाया हो। उसने अपने चेहरे पर हलका-सा मैकअप किया हुआ था, बाल खुले हुए और आँखों में काजल, होंठों पर गुलाबी-सी लालिमा लिए वाकई में कुदरत की बनाई हुई बेहतरीन कृति थी। मैंने भी अन्य लोगों की तरह भरपूर नयन सुख लिया।
चौराहे पर जितने भी लोग उपस्थित थे, सभी लोग उस लड़की को नजरें चुराकर देख रहे थे। तभी पीछे से किसी ने हॉर्न बजाया और मेरा ध्यान उस लड़की से हटा। मैंने अपनी बाइक को साइड में किया और उन सज्जन को जगह दी।
पास में खड़े हुए अंकल जो बार-बार मेरी ओर देखे जा रहे थे, तो मन में संकोच हुआ कि लगता है कि वह मुझे काफी देर से नयनसुख लेते हुए देख रहे थे। उनका चेहरा बता रहा था कि मेरा उस लड़की को यूँ देखना उन्हें भाया नहीं, पर वो भी कर क्या सकते थे, मन मसोसकर रह गए। मेरे आगे की ओर एक भाई साहब अपनी धर्मपत्नी के साथ स्कूटर पर सवार थे, वो भी बार-बार अपनी पत्नी की ओर देखते हुए उड़ती हुई नजरों से उस लड़की के सौंदर्य को निहार रहे थे। बाद में उन्होंने अपने साइड मिरर का एंगल ऐसा कर लिया कि उन्हें अब मुड़कर देखने की जरूरत महसूस नहीं हुई।
पर वो सज्जन यह नहीं देख रहे थे कि उनकी धर्मपत्नी को भी चार-पाँच अन्य लोग निहार रहे हैं। उनकी पत्नी बार-बार अपने बालों को सँवार रही थी और चहुँओर सरसराती नजर डाल रही थी।
दृश्य : तीन
अब ये मेरे ऑफिस के पास का अंतिम चौराहा था, जो कि सबसे ज्यादा व्यस्त रहता था। चौराहे का ट्रैफिक जितना व्यस्त था, उतना ही वहाँ पर तैनात यातायातकर्मी सुस्त था। वो अपनी मोटी तोंद का वजन अपने पैरों पर कैसे सह रह था, वह तो उसके पैर ही बता सकते हैं।
लाल बत्ती होने के बावजूद कुछ लोग लाइन क्रॉस करके आगे बढ़कर निकल चुके थे और वह यातायातकर्मी अपनी ही धुन में था। उसने इतनी जहमत भी नहीं उठाई की उनका नम्बर नोट कर ले।
तभी मेरे पास में जो लोडिंग रिक्शेवाला खड़ा था, उसका स्वर मेरे कानों में गूँजा- अब इस साले मोटे को भी बीस-तीस रुपए देने होंगे तब ही ये जाने देगा। मैंने लोडिंग वाले से पूछा ऐसा क्यों, तो रिक्शेवाला बोलता है कि दिन में हम इन व्यस्त चौराहों से लोडिंग रिक्शा नहीं निकाल सकते हैं और अगर निकालना होता है तो इन्हें बीस से तीस रुपए तक देना पड़ता है। उसकी बात खत्म ही नहीं हुई थी कि वह ट्रैफिक वाला उसके पास आ गया। रिक्शेवाले ने पहले से निकालकर रखे बीस रुपए उसके हाथों में थमा दिए।
यह वही ट्रैफिक वाला था, जो रेड लाइड तोड़कर जाने वालों का नम्बर भी नोट नहीं कर रहा था, लेकिन पूरे यातायात को सिर्फ ट्रैफिक छतरी के हवाले छोड़कर उस रिक्शेवाले के पास आ गया था। जब उसने बीस रुपए देखे तो उसका माथा ठनका और रिक्शेवाले से बोला- अगली बार नहीं आना है क्या। तीस रुपए दे। रिक्शेवाले ने कहा कि सर अभी तो बोहनी भी नहीं हुई है। बाद में ले लेना।
यह बात सुनते ही मोटे ट्रैफिक वाले के चेहरे पर गुस्सा स्पष्ट नजर आ रहा था। ज्यादा हुज्जत न करते हुए रिक्शेवाले ने 30 रुपए दे ही दिए। शायद उसे मालूम था कि यह मोटा ट्रैफिक वाला मानने को तैयार नहीं होगा।
ये पूरा वाकया अन्य लोग भी देख रहे थे, परन्तु कोई भी ऐसा नहीं था कि इस बात का विरोध करे... क्योंकि हम भी कभी-कभी न कभी 20-25 रुपए देकर चालान जैसी प्रक्रिया से बचते आए हैं। इतने में ही ग्रीन लाइट हो गई और मैंने अपनी बाइक को ऑफिस की ओर मोड़ दिया।
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